कुछ ऐसे गांव: न तो होली खेली जाती है और ना होता है होलिका दहन, पढ़ें- इस परंपरा के बारे में क्या कहते हैं ग्रामीण

पिथौरा। कल यानी 25 मार्च को रंगों का पर्व होली है। आज रात होलिका दहन किया जाएगा। होली को लेकर महासमुंद में शहरों में कई स्थानों पर रंग-गुलाल की दुकानें सज गई है। इस पर्व को बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ अंचलवासी मनाएंगे, लेकिन पिथौरा ब्लॉक में कुछ ऐसे भी गांव है, जहां न तो होली खेली जाती है और ना ही होलिका दहन किया जाता है।

इन गांवों में सहजपानी, सरगुनाभांठा, बम्हनीद्वार, गौरबहाली, पतेरापाली, बांजीबहाल, बागद्वारी, कस्तूरा बहाल, घुंचापाली, पड़कीपाली और बेलटिकरी शामिल है। यहां कई वर्षों से होली नहीं खेली जा रही है और ना ही होलिका दहन किया जाता है। होली पर्व के दिन गांव में सन्नाटा पसरा रहता है।

ब्लॉक के अंतिम छोर में बसे ग्राम पंचायत पतेरापाली के आश्रित ग्राम सहजपानी के ग्रामीण सुरेंद्र प्रधान, संजय यादव आदि लोगों ने बताया कि उनके दादा, परदादा के समय से उनके गांव में होली नहीं खेली जाती और ना ही होलिका दहन किया जाता है। इसके पीछे कारण क्या है? इसकी जानकारी किसी को नहीं है। सहजपानी के अलावा उनके ही पंचायत के पतेरापाली, बम्हनीद्वार, गौरबहाली, सरगुनाभांठा में भी होली नहीं खेली जाती है, जबकि उनके पंचायत के एकमात्र ग्राम समदरहा में होलिका दहन किया जाता है और होली भी खेली जाती है।

ग्रामीणों ने बताया कि घर-घर पूजा के लिये गुलाल का उपयोग किया जाता है, जिसे तिलक के रूप में लगाते हैं, लेकिन गांव में ना तो होली खेली जाती है और ना ही होलिका दहन होता है। ग्रामीण बताते हैं कि होलिका दहन के दिन कुछ घटना घटी होगी, जिसकी जानकारी 3 पीढ़ी के लोगों को भी नहीं है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लगभग डेढ़ सौ वर्षों से गांव में होली नहीं खेली जा रही है। ग्रामीणों ने कहा कि अगर वह किसी कार्य से बाहर या अन्य गांव जाते हैं तो उनके ऊपर पिचकारी मारी जाती है और गुलाल भी लगाया जाता है, लेकिन गांव में होली पर्व के दिन सन्नाटा छाया रहता है।

इसी तरह ग्राम पंचायत माल्दामाल के आश्रित ग्राम पड़कीपाली के ग्रामीण रेशम लाल बरिहा, लवत्तम पटेल, गिरधारी पटेल, लक्ष्मण पटेल आदि लोगों ने बताया कि उनके गांव में भी पिछले तीन पीढ़ी से होलिका दहन नहीं किया जा रहा है। इसके पीछे का कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि एक समय में गांव में होलिका दहन किया गया था, तो गांव की आधी बस्ती होलिका दहन के दिन जल गई थी, तब से होलिका दहन गांव में नहीं किए जाने की बात कही गइ। ग्रामीणों ने होली के दिन गांव में रंग गुलाल बच्चों की ओर से खेले जाने की बात कही। इसके अलावा समीप के गांव घुंचापाली, बागद्वारी, कस्तूराबहाल, बागद्वारी, बेलटिकरी, चारभांटा आदि गांव में भी होलिका दहन नहीं किया जाता है।

गांव से बाहर रहकर पढ़ने वाले बच्चों की होली गांव जाते ही हो जाती है फिकी
ग्रामीण बताते हैं कि उनके गांव के कई बच्चे गांव से बाहर छात्रावास या किराये के मकान में रहकर पढ़ाई करते हैं। होली में स्कूल छात्रावास में छुट्टी रहता है, ऐसे में न चाहकर भी बच्चे होली छुट्टी पर गांव पहुंचते हैं, लेकिन वे होली के एक-दो दिन पूर्व ही अपने स्कूल, छात्रावास में बड़े धूमधाम से होली खेलते हैं और खेलने के बाद गांव पहुंचते हैं। लेकिन यहां होली के दिन आम दिनों की तरह लोग नजर आते हैं। किसी के हाथ में ना तो गुलाल रहता है और ना ही पिचकारी। शहर से बाहर रहकर पढ़ने वाले हाथ मिलाकर एक दूसरे को गांव में होली की बधाई तो देते हैं, लेकिन गुलाल लगाकर कोई बधाई नहीं देता। हालांकि गांव में होली खेलने पर पाबंदी है, लेकिन होली छुट्टी पर गांव पहुंचे ग्रामीण व्हाट्सएप के माध्यम से या गले मिलकर होली की बधाई जरूर देते हैं। गांव में विद्यार्थियों का होली फीका रहता है।

बाहर रहकर कार्य करने वाले होली पर नहीं आते गांव

ग्रामीण ने बताया कि गांव से बाहर रहकर नौकरी करने वाले अधिकांश लोग होली पर गांव नहीं जाते, क्योंकि गांव में होली नहीं खेली जाती। वे अन्य त्योहारों में गांव तो जरूर पहुंचते हैं, लेकिन एकमात्र होली यह एक ऐसा त्योहार है, जिसे गांव में नहीं मनाया जाता। इसके चलते बाहर में प्राइवेट और शासकीय नौकरी करने वाले लोग होली पर्व पर गांव नहीं आते।

अन्य गांव के होलिका दहन में शामिल होते हैं यहां के ग्रामीण

पड़कीपाली के ग्रामीणों ने बताया कि गांव में होलिका दहन तो नहीं होता, लेकिन उनके पंचायत मल्दामाल और आसपास के गांव राफेल और अन्य गांव में होलिका दहन किया जाता है। अंगारे में चलने के इच्छुक व्यक्ति उत्सुकता के साथ अन्य गांव के होलिका दहन में शामिल होकर अंगारे में चलते हैं।

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